1. Every scheduled meeting would have new organizer (President), who would organize and manage all activities up till the new meeting schedule announces.
2. The Meeting Organizer shall be responsible for all the proposed or decided activities up to the end of his organized meetings and would be free only when he/she hands over the responsibilities to the next organizer.
3. Role of President would be cyclic.
4. Urja Punj shall start URJA SANCHARAN SAPTAHA to contact new people and to bridge the communication gap between the VUP or to implement new concepts into the system
5. The VUP decided to conduct a program on Stress Managment at the beginning of the year 2010.
6. Prior to the Stress managment Program, VUP targets to contact different NGOs and bring them on common Platform by the way of conducting a program or so. VUP expects to contact - Vivekananda Kendra - kanyakumari, Durga Utsav Samities - Jabalpur, local NGOs etc. by 20th of December. Initial Program or function (to explain concept of VUP to NGOs)is expected to conducted between 25-30th December.
7. Spoken English Class shall start from mid of January next month.
विवेकानंद ऊर्जा पुंज का उद्देश्य
१. प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्यक्ष (सीधा) लाभ पहुँचाना
२. गलत को "गलत है-गलत है" बार बार कहने से सही नहीं हो जाता इसलिए विवेकानंद ऊर्जा पुंज का मानना है की जो सत्य है उसे सबके सामने प्रकट कर दिया जाये अर्थात ऊर्जा पुंज का उद्देश्य सत्य को अपने आचार, विचार, व्यवहार एवं कृतित्व से सबके सामने प्रकट करना है.
३. हम सबके सपने बड़े है. बड़े होने भी चाहिए लेकिन हम सबके पास सपनों को पूरा करने के लिए आवश्यक संसाधन नहीं है. कही न कही हम सब इस अभाव का अनुभव करते है, लेकिन यदि हम अपनी छोटी-छोटी सामर्थ्य को मिलाएगे तो हम बड़े से बड़े सपने को पूरा करने में सक्षम हो सकेगें. अर्थात् हम सभी ऊर्जा पुंज सामूहिक शक्ति को एकत्रित कर स्वयं के लक्ष्य को प्राप्त करें तथा दूसरों की लक्ष्य प्राप्ति में प्रेरणापूर्ण सहयोग प्रदान करें।
२. गलत को "गलत है-गलत है" बार बार कहने से सही नहीं हो जाता इसलिए विवेकानंद ऊर्जा पुंज का मानना है की जो सत्य है उसे सबके सामने प्रकट कर दिया जाये अर्थात ऊर्जा पुंज का उद्देश्य सत्य को अपने आचार, विचार, व्यवहार एवं कृतित्व से सबके सामने प्रकट करना है.
३. हम सबके सपने बड़े है. बड़े होने भी चाहिए लेकिन हम सबके पास सपनों को पूरा करने के लिए आवश्यक संसाधन नहीं है. कही न कही हम सब इस अभाव का अनुभव करते है, लेकिन यदि हम अपनी छोटी-छोटी सामर्थ्य को मिलाएगे तो हम बड़े से बड़े सपने को पूरा करने में सक्षम हो सकेगें. अर्थात् हम सभी ऊर्जा पुंज सामूहिक शक्ति को एकत्रित कर स्वयं के लक्ष्य को प्राप्त करें तथा दूसरों की लक्ष्य प्राप्ति में प्रेरणापूर्ण सहयोग प्रदान करें।
लक्ष्य
लक्ष्य
हम स्वयं जहाँ पर है वहाँ पर श्रेष्ठतर प्रदर्शन करते हुए अपने तात्कालिक लक्ष्यों को प्राप्त करें एवं अपना भविष्यनिर्माण करें तथा स्वयं की प्रगति के साथ-साथ राष्ट्र की प्रगति में सहयोग दें। ऊर्जा पुंज का लक्ष्य व्यक्ति को लौकिक एवं अध्यात्मिक रूप से सुखी एवं समृध बनाते हुए "सर्व भूत हितेरतः कृण्वन्तो विश्वमार्यम् " (सब प्राणियों के हित में रत रहकर सारे विश्व को श्रेष्ठ बनायेंगे ) का है।
विवेकानन्द आह्वान
मेरी समस्त भावी आशा उन युवकों में केंद्रित है, जो चरित्रवान हों, बुद्धिमान हों,लोकसेवा हेतु सर्वस्व त्यागी और आज्ञापालक हों, जो मेरे विचारों को क्रियान्वित करने के लिए और इस प्रकार अपने तथा देश के व्यापक कल्याण के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग कर सकें। मुझे नचिकेता की श्रद्धा से सम्पन्न केवल दस या बारह मिल जायें तो मैं इस देश के विचारों और कार्यों को एक नई दिशा मैं मोड़ सकता हूँ।
निस्संदेह... क्योंकि ईश्वरीय इच्छा से इन्ही लड़कों में से कुछ समय बाद आध्यात्मिक और कर्म-शक्ति के महान पुंज (ऊर्जा पुंज ) उदित होंगे, जो भविष्य में मेरे विचारों को क्रियान्वित करेंगे।
निस्संदेह... क्योंकि ईश्वरीय इच्छा से इन्ही लड़कों में से कुछ समय बाद आध्यात्मिक और कर्म-शक्ति के महान पुंज (ऊर्जा पुंज ) उदित होंगे, जो भविष्य में मेरे विचारों को क्रियान्वित करेंगे।
Voice of Urja Punj
With the conviction firmly rooted in our heart that we are the servants of the Lord, his children, helpers in the fulfillment of his purposes, entering into the arena of work - Lord is Blessing Us
ऊर्जा पुंज उद्घोष
"मैं उस इश्वर की सेवा करना चाहता हूँ जिसे अज्ञानी लोग मनुष्य कहते हैं."
आत्मने मोक्षार्थं जगतहिताए च
यह उद्घोष है भारतीय मनीषा का इसे साकार करने के लिए भारत में जन्मा प्रत्येक व्यक्ति अपने शरीर में प्रवाहित ऋषि रक्त के स्पंदन से प्रेरित होता आया है।
'विवेकानंद ऊर्जा पुंज' ऐसा ही एक स्पंदन है। युगानुकूल धारणक्षम, पोषणक्षम एवं संस्कारक्षम व्यवस्था को युवाशक्ति के जागरण से अभिव्यक्त करना इसका हेतु है. स्वामी विवेकानंद की घनीभूत ऊर्जा की ललकार इसकी प्रेरणा है, उनका कृतित्व हमारा पथ प्रदर्शक है, उनका व्यक्तित्व हमारा आदर्श है। कथनी और करनी में साम्य रखकर ग़लत को ग़लत न कहकर सही को पहचान कर उसे समाज के सम्मुख प्रकट कर स्थापित करना इसका पाथेय है.
सत्य को पहचानने के लिए गरल (विष) को धारण कर विश्व के कल्याण, मानव मात्र के कल्याण की धारणा एक लगभग असंभव चुनौती है। 'विवेकानंद ऊर्जा पुंज' इस चुनौती को स्वीकार करता है और स्वयं को इस चुनौती का सामना कर उसके समुचित समाधान के लिए प्रस्तुत है। सत् और असत् के शाश्वत संघर्ष में विजयी सदैव सत्य ही होता है, किंतु कलयुग की भ्रामक माया इस प्रकार ग्रसती है की उस मोहिनी में असत् , सत् जैसा स्वीकार्य और प्रतिष्ठित हो जाता है। हम इस भ्रमजाल को तोड़ने की चुनौती को स्वीकार करते है।
विवेकानंद की अभिलाषा १०० युवकों में से एक युवक बनने के लिए स्वयं को प्रस्तुत करते हैं और नर और नारायण की कृपा से इस कसौटी पर खरे उतरने के लिए स्वयं को विराट चेतना का अंश बनाकर ज्ञानतत्त्व से एकात्म होकर कर्मयोगी के रूप में भक्ति के साथ आस्था के साथ प्राणपण से इस अखण्ड ऊर्जा पुंज की रश्मियां बन दिगदिगन्त में व्याप्ति के उस स्वप्न को साकार करने में रामसेतु निर्माण में गिलहरी के योगदान को समाधानकारी मानकर अनुकरणीय मानकर चलने का संकल्प करते है।
पर दुःखकातर होना सरल है। लेकिन दरिद्र नारायण की सेवा का सामर्थ्य उपजाना कठिन है। यही कठिनाई हमें आनंद से भरती है उत्साह से भरती है संकल्प से भरती है। समाज की धारा में हम जहाँ है वहाँ अपने कदमों को दृढ कर अपने छोटे - छोटे तात्कालिक लक्ष्यों को संगठन शक्ति के साथ प्राप्त करते हुए दूरगामी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कदम से कदम मिलाकर पुंजीभूत ऊर्जा को प्रकट कर आवश्यकता पड़ने पर इस यज्ञ में स्वयं की आहुति देने के सौभाग्य की होड़ में प्रथम पंक्ति में स्वयं को खड़ा करने का दुःसाहस हमें भगत सिंह , चन्द्रशेखर आजाद, सुभाष चंद्र बोस जैसे रणबांकुरों से विरासत में मिला है। यह हमारी धरोहर है हमारी थाती है। संपूर्ण जनमेदिनी हमारी इस दीप्त आभा के प्रकाश में अपना पथ प्राप्त कर सके ऐसी हमारी अभिलाषा है। अबूझ, अनादि, अगोचर को बूझना, समुद्र की उत्ताल लहरों को चीरना, पृथ्वी के गर्भ में झाँकना, विराट तत्व से एकाकार होकर स्वयं विराट में अभिव्यक्त होना, सूर्य को फल मानकर मुहँ में लेना हमारे खेल है। आइए विवेकानंद ऊर्जा पुंज की चुनौती स्वीकार कर विश्व को घनीभूत ऊर्जा से भर दें।
'विवेकानंद ऊर्जा पुंज' ऐसा ही एक स्पंदन है। युगानुकूल धारणक्षम, पोषणक्षम एवं संस्कारक्षम व्यवस्था को युवाशक्ति के जागरण से अभिव्यक्त करना इसका हेतु है. स्वामी विवेकानंद की घनीभूत ऊर्जा की ललकार इसकी प्रेरणा है, उनका कृतित्व हमारा पथ प्रदर्शक है, उनका व्यक्तित्व हमारा आदर्श है। कथनी और करनी में साम्य रखकर ग़लत को ग़लत न कहकर सही को पहचान कर उसे समाज के सम्मुख प्रकट कर स्थापित करना इसका पाथेय है.
सत्य को पहचानने के लिए गरल (विष) को धारण कर विश्व के कल्याण, मानव मात्र के कल्याण की धारणा एक लगभग असंभव चुनौती है। 'विवेकानंद ऊर्जा पुंज' इस चुनौती को स्वीकार करता है और स्वयं को इस चुनौती का सामना कर उसके समुचित समाधान के लिए प्रस्तुत है। सत् और असत् के शाश्वत संघर्ष में विजयी सदैव सत्य ही होता है, किंतु कलयुग की भ्रामक माया इस प्रकार ग्रसती है की उस मोहिनी में असत् , सत् जैसा स्वीकार्य और प्रतिष्ठित हो जाता है। हम इस भ्रमजाल को तोड़ने की चुनौती को स्वीकार करते है।
विवेकानंद की अभिलाषा १०० युवकों में से एक युवक बनने के लिए स्वयं को प्रस्तुत करते हैं और नर और नारायण की कृपा से इस कसौटी पर खरे उतरने के लिए स्वयं को विराट चेतना का अंश बनाकर ज्ञानतत्त्व से एकात्म होकर कर्मयोगी के रूप में भक्ति के साथ आस्था के साथ प्राणपण से इस अखण्ड ऊर्जा पुंज की रश्मियां बन दिगदिगन्त में व्याप्ति के उस स्वप्न को साकार करने में रामसेतु निर्माण में गिलहरी के योगदान को समाधानकारी मानकर अनुकरणीय मानकर चलने का संकल्प करते है।
पर दुःखकातर होना सरल है। लेकिन दरिद्र नारायण की सेवा का सामर्थ्य उपजाना कठिन है। यही कठिनाई हमें आनंद से भरती है उत्साह से भरती है संकल्प से भरती है। समाज की धारा में हम जहाँ है वहाँ अपने कदमों को दृढ कर अपने छोटे - छोटे तात्कालिक लक्ष्यों को संगठन शक्ति के साथ प्राप्त करते हुए दूरगामी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कदम से कदम मिलाकर पुंजीभूत ऊर्जा को प्रकट कर आवश्यकता पड़ने पर इस यज्ञ में स्वयं की आहुति देने के सौभाग्य की होड़ में प्रथम पंक्ति में स्वयं को खड़ा करने का दुःसाहस हमें भगत सिंह , चन्द्रशेखर आजाद, सुभाष चंद्र बोस जैसे रणबांकुरों से विरासत में मिला है। यह हमारी धरोहर है हमारी थाती है। संपूर्ण जनमेदिनी हमारी इस दीप्त आभा के प्रकाश में अपना पथ प्राप्त कर सके ऐसी हमारी अभिलाषा है। अबूझ, अनादि, अगोचर को बूझना, समुद्र की उत्ताल लहरों को चीरना, पृथ्वी के गर्भ में झाँकना, विराट तत्व से एकाकार होकर स्वयं विराट में अभिव्यक्त होना, सूर्य को फल मानकर मुहँ में लेना हमारे खेल है। आइए विवेकानंद ऊर्जा पुंज की चुनौती स्वीकार कर विश्व को घनीभूत ऊर्जा से भर दें।
Friday, December 4, 2009
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