लक्ष्य

लक्ष्य

हम स्वयं जहाँ पर है वहाँ पर श्रेष्ठतर प्रदर्शन करते हुए अपने तात्कालिक लक्ष्यों को प्राप्त करें एवं अपना भविष्यनिर्माण करें तथा स्वयं की प्रगति के साथ-साथ राष्ट्र की प्रगति में सहयोग देंऊर्जा पुंज का लक्ष्य व्यक्ति को लौकिक एवं अध्यात्मिक रूप से सुखी एवं समृध बनाते हुए "सर्व भूत हितेरतः कृण्वन्तो विश्वमार्यम् " (सब प्राणियों के हित में रत रहकर सारे विश्व को श्रेष्ठ बनायेंगे ) का है

विवेकानन्द आह्वान

मेरी समस्त भावी आशा उन युवकों में केंद्रित है, जो चरित्रवान हों, बुद्धिमान हों,लोकसेवा हेतु सर्वस्व त्यागी और आज्ञापालक हों, जो मेरे विचारों को क्रियान्वित करने के लिए और इस प्रकार अपने तथा देश के व्यापक कल्याण के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग कर सकेंमुझे नचिकेता की श्रद्धा से सम्पन्न केवल दस या बारह मिल जायें तो मैं इस देश के विचारों और कार्यों को एक नई दिशा मैं मोड़ सकता हूँ

निस्संदेह... क्योंकि ईश्वरीय इच्छा से इन्ही लड़कों में से कुछ समय बाद आध्यात्मिक और कर्म-शक्ति के महान पुंज (ऊर्जा पुंज ) उदित होंगे, जो भविष्य में मेरे विचारों को क्रियान्वित करेंगे

Voice of Urja Punj

With the conviction firmly rooted in our heart that we are the servants of the Lord, his children, helpers in the fulfillment of his purposes, entering into the arena of work - Lord is Blessing Us

ऊर्जा पुंज उद्घोष

"मैं उस इश्वर की सेवा करना चाहता हूँ जिसे अज्ञानी लोग मनुष्य कहते हैं."
आत्मने मोक्षार्थं जगतहिताए
यह उद्घोष है भारतीय मनीषा का इसे साकार करने के लिए भारत में जन्मा प्रत्येक व्यक्ति अपने शरीर में प्रवाहित ऋषि रक्त के स्पंदन से प्रेरित होता आया है
'विवेकानंद ऊर्जा पुंज' ऐसा ही एक स्पंदन हैयुगानुकूल धारणक्षम, पोषणक्षम एवं संस्कारक्षम व्यवस्था को युवाशक्ति के जागरण से अभिव्यक्त करना इसका हेतु है. स्वामी विवेकानंद की घनीभूत ऊर्जा की ललकार इसकी प्रेरणा है, उनका कृतित्व हमारा पथ प्रदर्शक है, उनका व्यक्तित्व हमारा आदर्श हैकथनी और करनी में साम्य रखकर ग़लत को ग़लत कहकर सही को पहचान कर उसे समाज के सम्मुख प्रकट कर स्थापित करना इसका पाथेय है.
सत्य को पहचानने के लिए गरल (विष) को धारण कर विश्व के कल्याण, मानव मात्र के कल्याण की धारणा एक लगभग असंभव चुनौती है'विवेकानंद ऊर्जा पुंज' इस चुनौती को स्वीकार करता है और स्वयं को इस चुनौती का सामना कर उसके समुचित समाधान के लिए प्रस्तुत हैसत् और असत् के शाश्वत संघर्ष में विजयी सदैव सत्य ही होता है, किंतु कलयुग की भ्रामक माया इस प्रकार ग्रसती है की उस मोहिनी में असत् , सत् जैसा स्वीकार्य और प्रतिष्ठित हो जाता हैहम इस भ्रमजाल को तोड़ने की चुनौती को स्वीकार करते है
विवेकानंद की अभिलाषा १०० युवकों में से एक युवक बनने के लिए स्वयं को प्रस्तुत करते हैं और नर और नारायण की कृपा से इस कसौटी पर खरे उतरने के लिए स्वयं को विराट चेतना का अंश बनाकर ज्ञानतत्त्व से एकात्म होकर कर्मयोगी के रूप में भक्ति के साथ आस्था के साथ प्राणपण से इस अखण्ड ऊर्जा पुंज की रश्मियां बन दिगदिगन्त में व्याप्ति के उस स्वप्न को साकार करने में रामसेतु निर्माण में गिलहरी के योगदान को समाधानकारी मानकर अनुकरणीय मानकर चलने का संकल्प करते है
पर दुःखकातर होना सरल हैलेकिन दरिद्र नारायण की सेवा का सामर्थ्य उपजाना कठिन हैयही ठिनाई हमें आनंद से भरती है उत्साह से भरती है संकल्प से भरती हैसमाज की धारा में हम जहाँ है वहाँ अपने कदमों को दृढ कर अपने छोटे - छोटे तात्कालिक लक्ष्यों को संगठन शक्ति के साथ प्राप्त करते हुए दूरगामी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कदम से कदम मिलाकर पुंजीभूत ऊर्जा को प्रकट कर आवश्यकता पड़ने पर इस यज्ञ में स्वयं की आहुति देने के सौभाग्य की होड़ में प्रथम पंक्ति में स्वयं को खड़ा करने का दुःसाहस हमें भगत सिंह , चन्द्रशेखर आजाद, सुभाष चंद्र बोस जैसे रणबांकुरों से विरासत में मिला हैयह हमारी धरोहर है हमारी थाती हैसंपूर्ण जनमेदिनी हमारी इस दीप्त आभा के प्रकाश में अपना पथ प्राप्त कर सके ऐसी हमारी अभिलाषा हैअबूझ, अनादि, अगोचर को बूझना, समुद्र की उत्ताल लहरों को चीरना, पृथ्वी के गर्भ में झाँकना, विराट तत्व से एकाकार होकर स्वयं विराट में अभिव्यक्त होना, सूर्य को फल मानकर मुहँ में लेना हमारे खेल हैइए विवेकानंद ऊर्जा पुंज की चुनौती स्वीकार कर विश्व को घनीभूत ऊर्जा से भर दें

Sunday, July 26, 2009

Months last meeting


Half Group Photo of VEC members in Month's last Meeting during an Energetic discussion on Swami Vivekanand thoughts.

Monday, July 20, 2009

भारत फिर उठेगा

भारत फिर उठेगा , किंतु केवल शारीरिक शक्ति से नहीं अपित आत्मा के बल से; विध्वंश की पताका के निचे नहीं, शान्ति और स्नेह के उस ध्वज को लेकर जो सन्यासी के वेष का प्रतीक है

अपने आंतरिक देवत्व का आह्वान करो, जो तुम्हें भूख - प्यास, सर्दी - गर्मी सहने की शक्ति प्रदान करेगाभोग विलास युक्त घरों में रहना, जीवन के समस्त सुखों से घिरे रहना और एक तुच्छ अविकसित धर्मं को पकड़े रहना अन्य देशों के लिए भले ही उपयुक्त हो, किंतु भारत के पास सच्ची चेतना हैयह सहज बुद्धि से ही ढोंग को पहचान लेता हैतुम्हें इसे त्यागना होगामहान बनोत्याग के बिना कोई भी महान कार्य होना सम्भव नहीं

अपने सुखों की, आनंदों की, अपने यश की, प्रतिष्ठा की, यहाँ तक कि अपने प्राणों की भी आहुति चढ़ा दो और मानव आत्माओं का ऐसा सेतु बाँध दो, जिस पर होकर ये करोंडों नर-नारी भवसागर को पार कर जाए। 'सत्य' की समस्त कठिनाइयों को एकत्र करोयह चिंता मत करो कि तुम किस पताका कि निचे चल रहे होयह भी चिंता मत करो कि तुम्हरा वर्ण क्या है - लाल, हरा या नीला ; बल्कि सब वर्णों को मिला दो और स्नेह के प्रतीक श्वेरंग का प्रखर तेज उत्पन्न करोहम केवल कर्म करेंपरिणाम अपनी चिंता स्वयं करेंगे मैं भविष्यद्रष्टा नहीं हूँ ; मैं उसके लिए चिंतित हूँकिंतु, एक दृश्य मेरे सामने बिल्कुल स्पष्ट है कि हमारी प्राचीन मातृभूमि एक बार जग उठी हैवह नवयौवना प्राप्त कर पहले से कहीं अधिक भव्य दीप्ती के साथ अपने सिंहासन पर बठी हुई हैसमस्त संसार को शांतिपूर्ण और मंगलमय वाणी से उसका संदेश सुनाओ.

शक्तिमयी माँ कृपा करो

हे भारत !
केवल दूसरों की हाँ में हाँ मिलाकर, दूसरों की इस छुद्र नक़ल के द्वारा, दूसरों का ही मुंह ताकते रहकर...क्या तू पाथेय के सहारे, सभ्यता और महानता के चरम शिकार पर चढ़ सकेगा ?
क्या तू अपनी इस लाज्यास्पद कायरता के द्वारा इस स्वाधीनता को प्राप्त कर सकेगा जिसे पाने के अधिकारी केवल साहसी और वीर है ?

हे भारत !
मत भूल, तेरे नारीत्व का आदर्श सीता, सावित्री और दमयंती हैं
मत भूल की तेरे उपास्यदेव देवाधिपति सर्वत्यागी, उमापति शंकर हैं
मत भूल की तेरा विवाह, तेरी धन-संपत्ति, तेरा जीवन केवल विषय -सुख के हेतु नही है, केवल तेरे व्यक्तिगत सुखोपभोग के लिए नही है
मत भूल की तू माता के चरणों में बलि चड़ने के लिए ही पैदा हुआ हैमत भूल की तेरी समाज-व्यस्था उस अनंत जगत्जननी महामाया की छायामात्र है
मत भूल की नीच, अज्ञानी, दरिद्र, अनपद, चमार, मेहतर सब तेरे रक्त मांस के हैं, वे सब तेरे भाई हैं
वीर पुरूष !
साहस बटोर, निर्भीक बन और गर्व कर कि तू भारतवासी हैगर्व से उद्घोषणा कर कि " में भारतवासी हूँ, प्रित्येक भारतवासी मेरा भाई है।"
मुख से बोल," अज्ञानी भारतवासी, दरिद्र और पीड़ित भारतवासी, ब्राह्मण भारतवासी, चांडाल भारतवासी सभी मेरे भाई हैं।" तू भी एक चिथड़े से अपने तन कि लज्जा को ढँक ले और गर्व पूर्वक उच्च-स्वर से उद्घोष कर,"प्रत्येक भारतवासी मेरा भाई है, भारतवासी मेरे प्राण हैं, भारत के देवी-देवता मेरे इश्वर हैंभारतवर्ष का समाज मेरे बचपन का झूला, मेरे यौवन की फुलवारी और बुढापे की कशी है।"
मेरे भाई !
कह :
"भारत की मिट्टी मेरे स्वर्ग है, भारत के कल्याण नीम ही मेरा कल्याण है।" अहोरात्र जपा कर," है गौरीनाथ ! है जगदम्बा ! मुझे मनुष्यत्व दोहै शक्तिमयी माँ ! मेरी दुर्बलता को हर लो; मेरी कापुरुषता को दूर भगा दो औरमुझे मनुष्य बनादो, माँ"

VUP awareness program to make river & ponds pollution free during Dashara Festival, Oct. 2010

How pleasant is it to be One

How pleasant  is it to be One
Gakkar-Bartha Program 5th July 2009 at Hanuman Toriya

VUP Meeting with Govindacharya

VUP Meeting with Govindacharya
Govindacharya with VUP members